हिन्दू धर्म में पूजा और आरती का विशेष महत्व है पर क्या आप जानते हैं कि यह दोनों एक दुसरे से काफी अलग होती है। जो लोग प्रतिदिन पूजा पाठ करते हैं वह अक्सर कहते हैं कि में रोजाना पूजा करता हूँ या आरती करता हूँ, पर इन दोनों में अंतर होता है यह पूजा पाठ की पद्धति का हिस्सा है और दोनों को ही जरुर माना है।
हिन्दू धर्म एक मात्र ऐसा धर्म में जिसमे आपको स्वतंत्रता प्राप्त है कि आप किसी भी ईश्वर को ईष्ट बना कर प्रतिदिन उनकी पूजा कर सकते हैं आपको आपकी पूजा पाठ का सकारात्मक फल जरुर मिलता है क्योंकि आपको पूजा अर्चना सीधे परम परमेश्वर के पास ही जाती है। पूजा अर्चना व्यक्ति को हर दुःख और संकट से बचाती है तथा सदा ईश्वर की कृपा भक्त पर बनी रहती है।
पूजा का अर्थ
पूजा के द्वारा भगवान को अपनी भक्ति प्रदर्शित की जाती है तथा नियमबद्ध तरीकों से फूल, फल, चावल, मिठाई, और पूजा की वस्तुए अर्पित की जाती है। पूजा करते समय भगवान को दीपक लगाया जाता है उन्हें सम्मान दिया जाता है और अपने मन को भगवान के प्रति लगाने का प्रयास होता है। सच्चे मन से पूजा करने से भगवान अपने भक्त की हर समस्या से रक्षा करते है। हिन्दू धर्म में सप्ताह के हर दिन को किसी एक विशेष भगवान के प्रति समर्पित माना जाता है जैसी सोमवार भगवान शंकर का दिन होता है और मंगलवार हनुमान जी का दिन माना जाता है आदि। पूजा के बाद ही आरती की जाती है और आरती सबसे अंतिम चरण होता है आरती के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। पूजा और आरती भगवान को प्रसन्न करने का एक तरिका है जो एक पवित्र अनुष्ठान माना गया है। पूजा नित्यकर्म का हिस्सा मानी जाती है तथा हर किसी को प्रतिदिन भगवान की पूजा करनी चाहिए।
आरती का अर्थ
हिन्दू संस्कृति में भगवान की पूजा के बाद उनकी आरती की जाती है जिसमे दीपक को भगवान की प्रतिमा के सामने घुमाया जाता है और उनकी आरती का वाचन किया जाता है जैसे गणेश की आरती “जय गणेश जय गणेश देवा” होती है। पूजा के सम्पन्न होने के बाद आरती की जाती है और माना जाता हैं कि आरती के बिना पूजा अधूरी रह जाती है। आरती में भगवान की महानता का गुणगान होता है और उनके और भक्त के बीच के पवित्र सम्बन्ध को दर्शाया जाता है। आरती करते समय घंटी बजाई जाती है, ताली बजाई जाती है तथा जोर जोर से जयकरे भी लगाएं जाते है। आरती में उपयोग की जाने ज्योत के प्रकाश को काफी शक्ति शाली माना जाता है और कहा जाता है कि यह सारी नकारात्मक ऊर्जा को खत्म कर देता है और भक्त के जीवन में सकारत्मक प्रकाश को भर देता है।
पूजा और आरती में अंतर
पूजा भगवान को प्रसन्न करने और उन्हें दीपक, अगरबत्ती, अन्य सामग्री अर्पित करने की एक प्रक्रिया हैं जिसके माध्यम से भगवान को प्रसन्न किया जाता हैं और विधि विधान से इस काम को किया जाता हैं जिसके बाद आरती की जाती है जिसमे भगवान की शक्तियों का गुणगान होता है और तालियों के साथ आरती की जाती है। आरती के बिना पूजा सम्पन्न नहीं मानी जाती है तथा हर भगवान की अलग-अलग आरती होती है जो उनकी शक्तियों और कार्यों पर आधारित होती है। आरती करने से मन में एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी होता है और तनाव जैसी मानसिक समस्या भी खत्म हो जाती है। आरती पूजा का अभिन्न भाग है जिसके द्वारा भगवान को याद किया जाता है और पूजा को पूर्ण किया जाता है।
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