भारत में कई धर्म उपस्थित है पर यहाँ का सबसे प्राचीन धर्म हिन्दू धर्म है और भारत देश ही वह देश है यहाँ हिन्दू धर्म के देवी देवताओं ने अवतार लिया है इसीलिए इसे देवभूमि भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म की पवित्र पुस्तकों में कई श्लोक और मंत्र मौजूद है और सारे प्राचीन ग्रन्थ संस्कृत भाषा में ही रचित है क्योंकि यह सबसे प्राचीन भाषा है और हिन्दू धर्म की सबसे मुख्य भाषा है। हिन्दू धर्म में एक लोकप्रिय वाक्यांश है धर्मो रक्षति रक्षितः जिसके बारें में आज हम बात करने वाले है और जानने वाले हैं कि धर्मो रक्षति रक्षितः कहा से लिया गया है और धर्मो रक्षति रक्षितः का अर्थ क्या होता है?
धर्मो रक्षति रक्षितः कहा से लिया गया है?
यह प्रसिद्ध वाक्यांश संस्कृत भाषा में है और यह महाभारत और मनुस्मृति से लिया गया है। महाभारत हिन्दू धर्म का प्रमुख ग्रन्थ है जो काफी प्राचीन है जिसमे भारत के इतिहास की प्रमुख गाथाएं मौजूद है तथा इसमें 1,10,000 श्लोक है। इसकी रचना वेदव्यास जी ने किया है। मनुस्मृति भी एक धर्मशास्त्र है जिसे प्रथम संविधान भी कहा जाता है एवं इसमें 12 अध्याय है और कुल 2684 श्लोक है, इस ग्रन्थ हैं वैयक्तिक आचरण और समाज रचना के लिए लिखा गया है।
धर्मो रक्षति रक्षितः का अर्थ
धर्मो रक्षति रक्षितः वाक्यांश एक श्लोक से लिया गया है जो कुछ इस तरह है –
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ।।
“जो धर्म का विनाश करता है, धर्म उसका का ही विनाश कर देता है, और जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म भी उसकी रक्षा करता है । इसलिए धर्म का कभी भी विनाश नहीं करना चाहिए, जिससे विनाशित हुआ धर्म भी कभी हमारा विनाश न कर सके।”
धर्म का अर्थ होता है मानवता, नैतिक नियम, कर्तव्य। जो इनका पालन करता है और भगवान की पूजा अर्चना करता है वही धार्मिक होता है इसके बिना हिन्दू धर्म की कल्पना करना व्यर्थ है। धर्म की रक्षा का अर्थ धर्म को स्थापित रखना और धार्मिक परम्पराओं और संस्कृति का पालन करते हुए उन्हें आने वाली पीढ़ियों तक पहुचाना है।
जो व्यक्ति धर्म का पालन नहीं करता है और नहीं धर्म ग्रंथो के अनुसार चलता है उसका विनाश निश्चित है, और जो व्यक्ति किसी न किसी तरह धर्म की रक्षा करता है उसकी रक्षा धर्म के द्वारा अवश्य की जाती है।
हिन्दू धर्म को सनातन धर्म भी कहा जाता है क्योंकि इसका न अंत है और नहीं प्रारम्भ, इसके लिए हिन्दू धर्म ही एक मात्र सत्य है। हिन्दू धर्म एक जीवन शैली है इस लिए इस धर्म में धर्म में पालन करने और उसकी रक्षा करने का अर्थ है कि मानवता, कर्तव्य, सत्य, अहिंसा, संस्कार आदि।
वर्तमान समय में धर्म की रक्षा की परिभाषा बदल गयी है और लोग दुसरे धर्मो पर प्रहार करने को धर्म की रक्षा समझते हैं, पर हिन्दू धर्म में ऐसा करना पाप है। पर समय आने पर राम बन कर अधर्मी को मिटाना भी धर्म है पर इससे किसी बेगुनाह को हानि नहीं होना चाहिए और नहीं धर्म के नाम पर हिंसा करना चाहिए। धर्म यानिकी परोपकार करना, स्त्री का आदर करना, सेवा भाव रखना, नम्रता का पालन करना, मर्यादा बनाए रखना आदि। पर कलयुग में व्यक्ति इन सब को भूल गया है और धर्म की राह से भटक सा गया है, कुक्र्त्यों में लीन हो गया है तथा सच्चे धर्म की परिभाषा भूल गया है।
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