शरीर को साफ़ रखना बेहद जरुर है वर्ना बदबू आने लगती है और बीमारियाँ भी हो सकती है। इसलिए हम प्रतिदिन नहाते हैं और बाल तथा दांत को साफ़ रखते हैं। इन्हें साफ़ और स्वच्छ रखने के लिए कई तरह के प्रोडक्ट जैसे साबुन, शेम्पू, फेस वाश, टूथपेस्ट, टूथब्रश आदि। जिस तरह शरीर को साफ़ रखने की जरूरत है उसी तरह दाँतों को और मुँह को भी साफ़ रखना होता है। दिन शुरुआत ही दातों को साफ करने के साथ होती है, हर कोई सबसे पहले ब्रश करता है फिर बाकि के सारे काम करता है और यदि ब्रश न किया जाएँ तो मुहं से बदबू आती रहती है और दांतों का रंग भी पीला पड़ने लगता है इस लिए इन सब समस्याओं से बचने के लिए प्रतिदिन ब्रश किया जाता है।
पर प्राचीन जमाने में जब ब्रश आदि का अविष्कार नहीं हुआ था तब क्या लोग दांतसाफ़ नहीं किया करते थे? ऐसा नहीं था कि पुराने समय में दातों को साफ़ नहीं किया जाता था। नहाना और दाँतों को साफ़ रखना काफी पुराना है और यह सेकड़ों सालों से मानव दांतों की सफाई करते आ रहा है पर इसके तरीको में काफी बदलाव हो चुका है।
पुराने समय में कैसे करते थे ब्रश
दांतों की सफाई करना बेहद जरुरी है इसीलिए हमेशा से ही हम दांतों की सफाई करते आ रहे हैं और लगभग हजारों सालो से हमारी लाइफस्टाइल में दाँतों को साफ रखना शामिल है। आज का टूथब्रश शायद कुछ ही वर्षों पहले आया हो पर दाँतों को साफ़ करने के अनेक तरीके पुराने समय में मौजूद थे, जिनमे खासकर नमक, नीम के दातुन, कई तरह के तेल, राख आदि शामिल थे।
1700 में ब्रश का अविष्कार हो चुका था, इस समय जानवरों की हड्डी और बालो से ब्रश बनाए जाएँ लगे थे और लगभग 100 में यह काफी कोंम हो गया और इसके साथ बाज़ार में कई तरह के पाउडर आने लगे जो काफी प्रचं में आ गये।