हिन्दू धर्म में अनेक देवताओ की पूजा की जाती है, इसीलिए कई बार लोगों के मन में इसको लेकर प्रश्न उत्पन्न हो सकते हैं। कई बार लोगों को कुलदेवता, ग्राम देवता और ईष्ट देवता में अंतर नहीं पता होता है, यदि आपको भी इनमे अंतर नहीं पता है तो आज आपको इस प्रश्न का जवाब मिल जाएगा।
कुलदेवता, ग्राम देवता और ईष्ट देवता में अंतर
हम अक्सर सुनते हैं कि कुलदेवता की पूजा करना है, या फिर किसी ग्राम देवता या ईष्ट देवता की प्रतिदिन पूजा करना चाहिए। पर यदि किस व्यक्ति को इनका मतलब नहीं पता हो या फिर वह इनमे अंतर नहीं जानता है तो उसे पूजा करने में समस्या आ सकती है। तो आइये जानते हैं कि इनमे क्या अंतर है?
पंडित रोहित शर्मा के अनुसार कुलदेवता उन्हें कहते हैं जिनकी पूजा हमारे पूर्वज सालों से करते आ रहे हैं, पीढी डर पीढी इनकी पूजा होती है. और माना जाता है कि किसी भी अन्य देवता से ज्यादा महत्व कुल देवता रखते हैं। कुल देवता की पूजा करने से हमारा संदेश भगवान तक पहुचता है। इसलिए किस भी शुभ कार्य से पहले इनकी पूजा की जाती है, जैसे शादी, मुंडन आदि। कुल देवता पुरे वंश की रक्षा करते हैं और हर कुल के अलग अलग कुल देवता होते हैं।
ग्राम देवता पुरे गावं के देवता होते हैं जो पुरे गाँव की रक्षा करते हैं और पुरे गाँव के लोग उनकी पूजा करते हैं, इनकी पूजा भी पीढ़ी डर पीढ़ी ही होती है पर हर कुल का व्यक्ति इनकी पूजा करता है। गाँव में रहने वले नागरिक अपने गाँव में ग्राम देवता की स्थापना भी करते हैं या फिर वर्षो पुराने समय से ही उनके गाँव में ग्राम देवता होते हैं।
इष्ट देवता जैसा कि हम हले ही बता चूका हैं कि हिन्दू धर्म में कई देवी देवता है, इसीलिए हर देवता की पूजा कर पाना सम्भव नहीं है। इष्ट देवता उन्हें कहा जाता है जो व्यक्ति के सबसे प्रिय होते हैं और जिनकी वह सबसे ज्यादा आराधना करता है। इष्ट देवता हर एक व्यक्ति के अलग अलग हो सकते हैं, परिवार में हर सदस्य के अलग-अलग इष्ट देव हो सकते हैं जैसे किसी के राम , किसी के कृष्ण, किसी के हनुमान या अन्य कोई भी।
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